Pitru Dosha
VibhutiGanesh



मेरे कुछ मित्र जब उन्हें जातक के प्रश्न के उत्तर में जन्म कुंडली में और कोई कारण नही मिलता तो चांडाल योग, काल सर्प योग व पितृदोष जैसे भ्रमित कर देने वाले योगों का सहारा लेते है| ये योग किस तरह से कॉमन-सेंस पर खरे नही उतरते यह देखना मजेदार होगा :- अकसर ऐसे मोको पर कुंडली में राहु कि उपस्थिति को ले करके भय उत्पन्न किया जाता है | वे कहते है: जब कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। फिर कुंडली के जो जो भाव मे यह योग बनता हो उस भाव के निर्दिष्ठ फल के साथ अशुभत्व जोड़ा जाता है | अब अगर आपको ज्योतिष का सामन्य ज्ञान हो तो आपको मालुम होगा कि भारत को छोड़ और कोई देश के ज्योतिषी 'राहु' व 'केतु' को ग्रह मानते ही नही| हमारे देश में तो न ही सिर्फ़ इन काल्पनिक छेदन बिन्दु को ग्रह माने गए बल्कि उनको अन्य ग्रहों के मुकाबले अधिक शक्तिशाली व दुष्टता के घोतक माने गए| आग में घी डालते हुए इन ग्रहों को 7 के उपरांत 5 व 9 स्थानों पर दृष्टि करने कि विषिष्ठ शक्ति भी प्रदान कि गई | जैसे कि हम सब जानते है: सूर्य एक महिने में एक राशि बदलता है, तो इस हिसाब से उसका कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, | नवम व दशम भावों में आना और राहु के साथ संयोग बनाना साल में 7 बार तो होगा ही होगा| तो क्या हर बारह मेंसे 7 व्यकित को पितृ दोष लग जाएगा ? इसी तरह से अगर सूर्य और शनि के योग को भी जोड़ें तो संभावना और बढ जायेगी !! यानि बहुत कम ही लोग इस मेंसे बच पाएँगे !! सूर्य एक महिने में एक राशि बदलता है, तो इस हिसाब से उसका कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में आना और राहु के साथ संयोग बनाना साल में 7 बार तो होगा ही होगा| तो क्या हर बारह मेंसे 7 व्यकित को पितृ दोष लग जाएगा ? |